अधूरी कहानी... ना मुझे राधा बना सका ना रुकमनी... एक तरफ़ा प्रेम शायरी
ना मुझे राधा बना सका ना रुकमनी...
किस्मत में नहीं था जो मेरी
माँगा था मेने जिसे
मेरे आसपास के सारे मंदिर में
पर फिर भी कहानी मेरी अधूरी
राधाकृष्ण जैसी भी ना बनी..
सिर्फ में ही तरसती रही उसके लिए
सिर्फ में ही तडपती रही उसके लिए
सिर्फ में ही क्यों आशु बहाती रही उसके लिए ?
ये एक तरफ़ा प्रेम मेरा
ना मुझे राधा बना सका ना रुकमनी...
इतना भी नसीब ना था मेरा
की मीरा बनकर ज़हर पी जाऊ में
क्युकी
उसके बाद भी वो मुझे नही मिलने वाला था
ना प्रेमिका समझा उसने मुझे
ना पत्नी होने का सन्मान दिया
हम तो राजी थे अगर
बदनाम हमें किसीने तेरे नाम से किया होता
और फिर शिकायत भी कैसे करे
शायद इतना खुश तो वो मेरे साथ भी ना होता..
अब तो मेरा भगवान भी मुझे झूठा दिलासा देता है
अगले जन्म में वो मेरा होगा ऐसा कहता है
ना उसका प्रेम मुझे दिया
और ना ही मुझे उसे भूलने दिया
ये एक तरफ़ा प्रेम मेरा
ना मुझे राधा बना सका ना रुकमनी...
तड़पने के लिए तो हम भी राजी थे जिंदगी भर
अगर
तूम राम के जैसे आते
मेरे शबरी के जैसे जीवन में
मगर
ये कैसा प्रेम मेने तुमसे किया
ना तुम कभी हमारे हुए
ना हमने कभी खुदको किसी ओर का होने दिया..
सारा जीवन बस एक इंसान को समर्पित किया
और अंतत:
उसके जीवन की किताब में हमारे नाम का एक पूर्णविराम भी नहीं मिला
हमने फिर भी उससे ही प्रेम किया
ऐसा ही था एक तरफ़ा प्रेम मेरा
जो
ना मुझे राधा बना सका ना रुकमनी...
राही - अकेला मुसाफ़िर

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