विजयगढ़ किला और राजकुमारी चंद्रकांता की कहानी


नौगढ़ विजयगढ़ में थी तकरार
लेकिन
नौगढ़ का राजकुमार 
करता था चंद्रकांता से प्यार..

महाभारत काल में राजा बाणासुर से के द्बवारा बनाया हुआ ये दुर्ग आज भारत के उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के रॉबर्ट्सगंज में चतरा-सिलथम रोड पर धंधरौल बांध के पास चतरा ब्लॉक के मऊ कलां गांव में दक्षिण पूर्व दिशा में रॉबर्ट्सगंज से 30 किमी दूर स्थित एक खंडहर किला है ।सोनभद्र से करीब 30 किमी दूर मऊ कला गांव स्थित विजयगढ़ दुर्ग चंद्रकांता की अमर प्रेम कहानी का प्रतीक माना जाता है। नौगढ़ के युवराज वीरेंद्र सिंह संग उसकी प्रेम कहानी को लेकर देवकी नंदन खत्री ने १८८८ में चंद्रकांता नाम का उपन्यास लिखा जिसमे उन्होंने चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमारी की प्रेम कहानी का वर्णन किया बादमे उस पर आधारित टीवी सीरियल चंद्रकांता प्रसारित हुआ था, जो काफी लोगो मे लोकप्रिय रहा। इस तिलस्म दुर्ग की खासियत है कि दुर्ग के अंदर से गुफा के जरिए नौगढ़ और चुनारगढ़ किले के लिए रास्ता बना है। यह रास्ता तिलस्म से ही खुलता है। इस दुर्ग का खजाना भी इन्हीं गुफाओं में छिपे होने की संभावना अक्सर लोग जताते है। दुर्ग के ऊपर बने छोटे-बड़े सात तालाब हैं। 

चन्द्र गुप मौर्य को जब मगध पर अब आक्रमण करना था तो उन्होंने अपनी सेना सहित वहा आराम किया था | और जब उन्होंने मगध नरेश जरासन्ध को यहा बंदी बनाया था | इस किले का इतिहास काफी पुराना है.. लेकिन देवकी नंदन के उपन्यास के बाद ये काफी  प्रसिद्ध हुआ | यहाँ पर एक तरफ रामसागर तालाब है जिसमे कभी पानी नहीं सूखता और श्रवण मास में कावडीये जल भरकर शिवद्वार में जलभिशेक करने जाते है और यहाँ यहाँ एक मिरांन शाह बाबा की दरगाह पर दूर दूर से चद्दर चढाने लोग आते है इसलिए यह किल्ला हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाई की आस्था का प्रतिक है |

वैसे तो इस दुर्ग में सात तालाब है लेकिन इसमें  से रामसागर और मिरासागर तालाब में पानी कभी नही सूखता |  और इन्ही दो तालाबो के बिच में बना हुआ है राजकुमारी चंद्रकांता का महल जिसे रंगमहल नाम से जाना जाता है | जो की आज वो महल और किला खंडहर बन चूका है | चंद्रकांता विजयगढ़ की एक अत्यंत ही सुंदर राजकुमारी थी जिसे नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र से प्रेम हुआ था लेकिन दोनों राज्यों को आपस में दुश्मनी थी और दुश्मनी का कारन था की चंद्रकांता के पिता  महाराज जयसिंह को लगता था की उन्के भाई को नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह ने मार डाला था जो की सिर्फ एक गलतफेमी थी | और इसी गलतफेमी के चलते वो इस विवाह के लिए कभी राजी नही हुए लेकिन राजकुमारी तो बचपन से ही वीरेंद्र सिंह से प्रेम करती थी और वो जैसे जैसे बड़ी होती जा रही थी दोनों के बिच का प्रेम भी बढ़ रहा था | क्रूर सिंह जो की विजयगढ़ के राज दरबार में शामिल था वो राजकुमारी को पाना चाहता था और उसी ने ही महाराजा के भाई की हत्या कर दी थी और इल्जाम नौगढ़ के राजा पर डाल दिया था | लेकिन सारी कोशिसो के बावजूद जब वो राजकुमारी को हासिल नही कर पाया था तो वो भाग कर चुनारगढ़ चला गया और वहा के राजा शिवदत्त से दोस्ती करली | शिवदत ने राजकुमारी चंद्रकांता को तिलिस्म से ( मायाजाल ) केद कर लिया था जिन्हें युवराज वीरेंद्र सिंह ने छुड़ाया था |

इस गढ़ की खास बात ये है की इस किले में ऐसी गुफाये है जो नौगढ़ और चिनारगढ़ निकलती है लेकिन वो गुफाये सिर्फ तिलिस्म से ही खुलती है और तिलिस्म से ही बंद होती है | और नौगढ़ का युवराज वीरेंद्र सिंह इसी गुफाओ से राजकुमारी चंद्रकांता से मिलने आते थे | और इन्ही गुफाओ में किल्ले का सारा खजाना छुपा होने की संभावना है | कैमूर की पहाडियों में ४०० फिट उपर बने इस किल्ले में आज भी बहोत सारे रहस्य है जैसे की वो गुफा को कैसे खोलना जिसमे से नौगढ़ और चिनारगढ़ का रास्ता है, खजाना तो है लेकिन वो किस जगह रखा है ये कोई नही जानता, इस किल्ले में सिर्फ दो ही तालाब ऐसे क्यों जिसमे पानी नही सूखता क्युकी बाकी के पांच तालाब गर्मियों में सुख जाते है यहाँ तक की इन दोनों तालाब की गहराई कितनी है ये भी आजतक पता चल नहीं पाया | दुःख की बात तो ये है की इतिहास, रोमांच और रहस्यों से भरा ये किल्ला आज सिर्फ एक खंडहर बन गया है |

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